पूर्णागिरी मंदिर, समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर, उत्तराखंड के टनकपुर से लगभग 14 से 15 किमी दूर है। मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है और यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर सती माता की नाभि गिरी थी। पूर्णागिरी को पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर शारदा नदी के पास स्थित है। पूर्णागिरी मंदिर अपने चमत्कारों के लिए भी खासा जाना जाता है।शारदा नदी भारत और नेपाल का बॉर्डर है। क्योंकि शारदा नदी के उस पार नेपाल है ।
झूठे का मंदिर की कहानी
पूर्णागिरी मंदिर से लौटते समय झूठे का मंदिर की भी पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि एक व्यापारी ने मां पूर्णागिरी से वादा किया था कि अगर उसकी पुत्र की इच्छा पूरी हुई तो वह एक सोने की वेदी का निर्माण करेगा। उनकी इच्छा देवी ने प्रदान की थी। लालच आते ही व्यापारी पगला गया और उसने सोने की परत चढाने के साथ तांबे की एक वेदी बना डाली। ऐसा भी कहा जाता है कि जब मजदूर मंदिर को ले जा रहे थे तो उन्होंने कुछ देर आराम करने के लिए मंदिर को जमीन पद रख दिया। उन्होंने कितना मंदिर को उठाने की कोशिश की, लेकिन मंदिर उठ न सका। व्यापारी को मां द्वारा की जाने वाली ये वजह समझ आ गई और उसने मांफी मांगने के बाद वेदी के साथ मंदिर बनवा डाला।
मंदिर के आस पास की कुछ जगह
अवलाखान या हनुमान चट्टी इस मंदिर के पास स्थित है, जिसे 'बंस की चराई' पार करने के तुरंत बाद आसानी से जाया जा सकता है। यहां आप टनकपुर शहर और कुछ नेपाली गांवों को भी देख सकते हैं। इस मंदिर के पास ही बुराम देव मंडी स्थित है जो पर्यटकों के बीच भी काफी लोकप्रिय है।
कैसे पंहुचे और कहा रुके ।
यहां का निकटम रेलवे स्टेशन तथा बस स्टैंड टनकपुर है ।
टनकपुर के लिए बस तथा ट्रेन दिल्ली बरेली लखनऊ आदि जगहों से मिलती है।
रात में रुकने के लिए टनकपुर में ही ठीक रहता है क्योंकि मंदिर के करीब में रुकने और खाने आदि के लिए कोई अच्छी सुविधा नहीं है ।
मंदिर के पास जो प्रसाद आदि की दुकानें है वहा भी आपको रुकने स्नान आदि की सुविधा मिल जाती है ।